श्रद्धा, सेवा और संस्कृति का अद्भुत संगम उस समय देखने को मिला जब श्री सप्तदेव मंदिर परिसर में कृष्ण पक्ष की अमावस्या पर आयोजित मां राणीसती दादी के संगीतमय मंगलपाठ के अवसर पर मंदिर के जीर्णोद्धार कार्य से जुड़े समस्त शिल्पकारों का सार्वजनिक एवं पारंपरिक सम्मान किया गया।
यह अभिनव आयोजन श्री सप्तदेव मंदिर ट्रस्ट परिवार एवं महिला मंडल समिति द्वारा एक सामाजिक उत्तरदायित्व के रूप में किया गया, जिसमें उन हाथों को आदरपूर्वक सम्मानित किया गया जिन्होंने मंदिर को नवनिर्मित रूप में गढ़ा है। मार्बल कारीगर, चित्रकार, पेंटर, सीलिंग व सजावट कर्मी, कारपेंटर और अन्य सहयोगी श्रमिकों को दुपट्टा ओढ़ाकर, स्मृति चिन्ह भेंट कर तथा बरसात के मौसम को ध्यान में रखते हुए छाता प्रदान कर भावभीना सम्मान दिया गया।
शिल्पकारों ने भावविभोर होकर कहा कि यह उनके जीवन का पहला अवसर है जब समाज ने खुले मंच पर उन्हें इतनी गरिमा से सम्मानित किया। उपस्थित बुद्धिजीवियों ने इसे एक ऐतिहासिक और प्रेरक पहल बताया। वक्ताओं ने कहा कि जहाँ इतिहास में भव्य निर्माण करने वाले शिल्पकार गुमनाम रह जाते थे या उन्हें पीड़ा दी जाती थी — जैसे ताजमहल के शिल्पकारों के हाथ काटे जाने की कथा — वहीं श्री सप्तदेव मंदिर ने आज उन हाथों को ससम्मान छाया दी है, जो आने वाले समय में न केवल इस मंदिर, बल्कि अनेक मंदिरों को अपनी कला से और भी भव्य बनाएँगे।
यह आयोजन श्रम और शिल्प की प्रतिष्ठा को एक नया आयाम देता है। यह संदेश देता है कि समाज के निर्माण में लगे हर व्यक्ति का योगदान महत्वपूर्ण है और उन्हें यथोचित सम्मान मिलना चाहिए।
इस गरिमामय अवसर पर श्री सप्तदेव मंदिर ट्रस्ट के प्रमुख श्री अशोक मोदी सहित अयन मोदी, वैद्यिक मोदी, अमरनाथ अग्रवाल, जगदीश प्रसाद अग्रवाल, भगवती प्रसाद गोयनका, अंकित गोयनका, विजय गोयनका, बनमाली शर्मा, नवीन तिवारी, सोमदत्त द्विवेदी जैसे प्रमुख जनप्रतिनिधि एवं सामाजिकजनों की गरिमामयी उपस्थिति रही।
महिला मंडल से सरला मित्तल, किरण मोदी, प्रेमा अग्रवाल, अंकिता मोदी, लीना अग्रवाल, अनिता गुप्ता, ललिता अग्रवाल तथा सभी मंगलपाठी बहनों ने आयोजन में अहम भूमिका निभाई, जिससे कार्यक्रम में गरिमा और भव्यता का सुंदर समावेश हुआ।
नगरवासियों और श्रद्धालुओं ने इस आयोजन की मुक्त कंठ से सराहना करते हुए इसे समाज के लिए प्रेरणादायी बताया और सुझाव दिया कि ऐसे आयोजन एक परंपरा के रूप में निरंतर जारी रहने चाहिए, जिससे श्रमशील वर्ग को सामाजिक सम्मान व गौरव प्राप्त हो।