गरियाबंद। जिले के पायलीखंड में हीरा जिन आदिवासियों की जमीन में निकली थी, दो दशक बाद भी खदान का जिक्र राजस्व रिकार्ड में नहीं. इतना ही नहीं खरबों की संपत्ति जिनकी जमीन में दबी है, उन्हें एक कौड़ी भी नसीब नहीं हुआ. हद तो तब हो गई जब उस आदिवासी की हीरा खदान वाली जमीन गलत तरीके से गांव के सरपंच के नाम चढ़ गई.
दरअसल, देवभोग तहसील के सेनमुड़ा में आदिवासी सहदेव गोंड की जमीन में 1987 में अलेक्जेंडर होने का पता चला तो मैनपुर तहसील के पायलीखंड निवासी भूंजिया बरनू नेताम के खेत में हीरा होने की जानकारी 1992 में लगी. अविभाजित मध्यप्रदेश सरकार की माइनिंग कॉरपोरेशन दोनों खदानों में पूर्वेक्षण के नाम पर जम कर दोहन भी किया. आज इन रत्नों की चमक विदेशों तक पहुंच गई पर जमीन के मालिक आज भी कच्चे मकान में रहते हैं. मुआवजे की आस में पीढ़ियां गुजर रही पर राजस्व रिकार्ड में खदान का जिक्र तक नहीं हो सका.
पूर्वेक्षण का मामला कोर्ट में लंबित होने के कारण आज तक कीमती जमीन के वारिसाें को मुआवजा तक नहीं मिल सका. जमीन में हीरे निकलने के चलते फायदे तो अधर में लटका ही बल्कि पायलीखंड के बरनू भूंजिया को हीरा धारित जमीन को हाथ से गंवाना पड़ गया. बरनू का उत्तराधिकारी उसका पोता नयन सिंह हैं. दो साल पहले जब जमीन में चढ़े दादा और पिता के नाम का फौत कटवा कर नया पट्टा बनाने गया तो कूल 12 एकड़ जमीन में लगभग दो एकड़ जमीन की कमी आ गई.
खदान वाली जमीन अब बरनू के वारिसों के नाम नहीं रहा. उत्तराधिकारी पोता नयन सिंह ने बताया कि दादा बरनू की मौत के बाद उनकी सारी जमीन पिता जयराम, चाचा कुवर सिंह और संतोष के नाम थी, लेकिन अब ये तीनों गुजर गए तो उनकी कूल साढ़े 12 एकड़ जमीन का मुखिया नयन सिंग हुआ. अन्य चचेरे भाईयों के नाम हिस्सेदारों में दर्ज है.