Sunday, October 26, 2025

संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा का आज़ अंतिम दिन

कंचन की नगरी चांपा में सप्त-दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिन श्रीकृष्ण-रुक्मिणी मंगल विवाह हुआ । भागवत कथा के व्यास पीठ पर कथा वाचिक बाल विदुषी कु पंकजा- कु प्रज्ञा वैष्णव ने पंच अध्याय का वर्णन किया ।

न्यूज़ जांजगीर-चांपा । नगर के प्रतिष्ठित साहू परिवार के द्वारा राजकुमार साहू सभापति निवास स्थल पर श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन दिनांक 17 नवंबर से 24 नवंबर तक किया जा रहा हैं । इस सप्त-दिवसीय कथा के व्यास पीठ से राधा स्वरुपा द्वय कथा वाचिका पंकजा दीदी एवं प्रज्ञा दीदी जी ने श्रीमद्भागवत कथा के प्रेरणास्पद प्रसंगों का मार्मिक वर्णन किया । दीदी पंकजा ने कहा कि महारास में पांच अध्याय होते हैं । उनमें गाए जाने वाले पंच गीत, भागवत के पंच प्राण हैं , जो भी ठाकुरजी के इन पांच गीतों को भाव से गाता हैं । वह भव पार हो जाता हैं । उसे वृंदावन की भक्ति सहज प्राप्त हो जाती हैं । कथा व्यासपीठ से परम विदुषी पंकजा ने कथा में भगवान का मथुरा प्रस्थान, कंस वध , महर्षि संदीपनी के आश्रम में विद्या ग्रहण करना , उद्धव-गोपी संवाद , द्वारका की स्थापना , रुक्मणी-मंगल विवाह के प्रसंग का संगीतमय भावपूर्ण कथा श्रवण कराया । उन्होंने कहा कि आस्था और विश्वास के साथ भागवत प्राप्ति आवश्यक हैं । भागवत प्राप्ति के लिए निश्चय और परिश्रम भी जरूरी हैं । धार्मिक आस्था रखने वाले शशिभूषण सोनी ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण-रुक्मणी मंगल विवाह की सुंदर झांकियां सजाई गई जिसे सभी लोगों ने ख़ूब आनंदित किया । कथा के दौरान भक्तिमय संगीत ने श्रोताओं को आनंद से परिपूर्ण किया । कथा वाचिक ने भागवत कथा के महत्व को बताते हुए कहा कि जो भक्त प्रेमी कृष्ण-रुक्मणी के विवाह उत्सव में शामिल होते हैं उनकी वैवाहिक समस्या हमेशा के लिए समाप्त हो जाती हैं । रासलीला में जीव का शंका करना या काम को देखना ही पाप हैं । गोपी गीत पर बोलते हुए कथा व्यास ने कहा जब-जब जीव में अभिमान आता हैं भगवान उनसे दूर हो जाते हैं । जब कोई भगवान को न पाकर विरह में होता है तो श्रीकृष्ण उस पर अनुग्रह करते हैं उसे दर्शन देते हैं । भगवान श्रीकृष्ण के विवाह प्रसंग को सुनाते हुए बताया कि भगवान श्रीकृष्ण का प्रथम विवाह विदर्भ देश के राजा की पुत्री रुक्मणि के साथ संपन्न हुआ । इस कथा में समझाया गया कि रुक्मणि स्वयं साक्षात लक्ष्मी हैं और वह नारायण से दूर रह ही नही सकती । यदि जीव अपने धन अर्थात लक्ष्मी को भगवान के काम में लगाए तो ठीक नही तो फिर वह धन चोरी द्वारा, बीमारी द्वारा या अन्य मार्ग से हरण हो ही जाता हैं । धन को परमार्थ में लगाना चाहिए और जब कोई लक्ष्मी नारायण को पूजता हैं या उनकी सेवा करता हैं तो उन्हें भगवान की कृपा स्वत: ही प्राप्त हो जाती हैं ।

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