कोरबा.कोरबा जिले में हरदेव दर्री बराज का टापू आसपास के 10 से अधिक ग्रामो के ग्रामीणों की आय का बड़ा साधन बन गया है। बताया जा रहा हैं की यहां करीब 200 से भी अधिक किसान 1200 एकड़ में धान के साथ ही सब्जी की फसल लेते हैं, लेकिन टापू तक जाने एकमात्र सहारा नाव है।
जानकारी के अनुसार फसल तैयार करने के बाद नाव से किनारे तक लाते हैं, फिर घर तक पहुंचाते हैं। यहां खेती करना ग्रामीणों के लिए रोमांच भरा होता है। कई बार बाढ़ आने पर फसल खराब भी हो जाती है।
उल्लेखनीय हैं की दर्री बराज का निर्माण वर्ष 1965 में पूरा हुआ। हसदेव नदी पर बने बराज का जल भराव क्षेत्र करीब 40 किलोमीटर में फैला हुआ है। इसके लिए आसपास के ग्रामो की जमीन ली गई है। जल भराव क्षेत्र में ही एक बड़ा टापू है, जहां आसपास ग्राम के किसान धान के साथ ही सब्जी की फसल लेते हैं। यह जोखिम भरा भी होता है। यह टापू इसलिए नहीं डूबता, क्योंकि बराज का जल स्तर 941 फीट ही रखा जाता है। हालांकि कई बार बाढ़ आने से फसल बहने का भी खतरा रहता है।
हसदेव नदी के किनारे ग्राम सोनगुढ़ा, तरईडाड़, नर्मदा, धनगांव, डाड़पारा, बंजर के साथ आसपास के किसान लंबे समय से खेती कर रहे हैं। नदी के बीच की जमीन काफी उपजाऊ भी है। सिंचाई के लिए पानी की कमी भी नहीं होती है। गर्मी के समय यहां के ग्रामीण सब्जी की फसल लेते हैं। यहां सभी किसानों के पास टापू तक जाने छोटी नाव है। हल चलाने मवेशी को भी टापू तक ले जाते हैं। ग्रामीण बृजलाल का कहना है कि टापू में खेती करना जोखिम भरा भी है, लेकिन यहां खेती करने से कोई परेशानी नहीं है। लंबे समय से यहां आसपास के ग्रामीण 1200 एकड़ में धान की फसल ले रहे हैं।
* जमीन डुबान में समा गई, अब टापू आय का जरिया
छत्रपाल तराईडांड़ के छत्रपाल सिंह का कहना है कि 6 दशक पहले दर्री बराज के डुबान में किसानों की खेतिहर जमीन समा गई, परंतु नदी के टापू ने खेती का रास्ता खोल दिया। 4 महीने की मेहनत में साल भर के लिए अनाज मिल जाता है। नदी में पुल बनाने की मांग की जा रही हैं।
* डुबान की जमीन लीज पर लेकर कर रहे खेती-कार्यपालन अभियंता
हसदेव बांगो परियोजना के कार्यपालन अभियंता एस.एन. साय ने बताया कि डुबान क्षेत्र में ग्रामीण खाली जमीन को लीज पर लेकर खेती करते हैं। उपजाऊ जमीन की वजह से पैदावार भी अच्छी होती है।