मथुरा और वृंदावन अपने विशाल और भव्य मंदिरों के साथ पर्यटन के लिए भी प्रसिद्ध हैं । मंदिरों के दीवारों पर उत्कीर्ण स्थापत्य कला और शिल्प कारी देखने शौकिन लोग मथुरा तथा वृंदावन धाम की यात्रा करते हैं । श्रीधाम वृन्दावन का मुख्य मंदिर हैं, जिसके नाम से ही संभवतः वृंदावन पड़ा।कहा जाता हैं कि इन मंदिरों का ध्वंस करने औरंग़ज़ेब आया था लेकिन मंदिर के अंदर घेरा डालते ही अंधा हो गया। फलत: उसने मंदिर के पुजारी जी को बेशकीमती हीरे-जवाहरातें ठाकुर जी को भेंट में चढ़ाने दे दिया और अपनी आंखों की रोशनी वापिस करने अनुनय-विनय करने लगा, वह हीरा आज़ भी ठाकुर जी के दाढ़ी में लगा हुआ हैं । भगवान श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा-वृंदावन में सैकड़ों मंदिर हैं , इसके कारण श्रद्धालु भक्तों का जमावड़ा बारहों महीने लगा रहता हैं। उक्ताशय के विचार इंजीनियर आलोक कुमार सोनी चांपा की मथुरा-वृंदावन धाम यात्रा एक अद्वितीय और प्रेरक अनुभव हैं , जिसे उन्होंने वृंदावन वन निकुंज की गलियों में भ्रमण करते हुए कहा । उन्होंने बताया कि दिनांक 23 फरवरी,2025 प्रातः काल सूर्य प्रकाश की लालिमा को देखा जो कि बहुत ही सुंदर और पवित्र अनुभव हैं । वृंदावन धाम की ओर प्रस्थान करते समय आलोक सोनी ने घर-परिवार के साथ-साथ अपनी मम्मी-पापा श्रीमति शशि प्रभा एवं शशिभूषण सोनी का आशीर्वाद लिया जो उनके लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण और प्रेरक क्षण हैं। अपनों के साहचर्य से दग्ध तेज़ कदमों से प्रभु भक्ति-भाव, साधना और सनातन धर्म के लिए समर्पित होने का उनका निर्णय वास्तव में एक अद्वितीय और प्रेरक क़दम हैं ।
वृंदावन तो श्रीराधा जी का बाग हैं । अतः मैं बड़भागी जीव हूं जो वृंदावन से अनुराग करता हूं – आलोक ।
वृंदावन की समानता केवल वृंदावन धाम ही कर सकता हैं । यही से भगवान चार धाम के लिए प्रस्थान किए – जगन्नाथ पुरी, बद्रीनाथ, द्वारिकापुरी और रामेश्वरम । इन चारों धामों की यात्रा समाप्त करके जो भी श्रद्धालु भक्त यहां आते हैं उन्हें ठाकुर जी साक्षी स्वरुप छड़ी,चने की दाल, अंगूठी और गोपी चंदन ठाकुर जी को भेंट करते हैं । आगे जैसा कि आलोक कुमार ने कहा हैं- यहां यमुना का मनोहर पुलिन हैं । सुंदर वंशीवट हैं , जहां भगवान श्रीकृष्ण ने मुरली बजाई थी । यहां सघन वृक्ष हैं,
भूमि में हरियाली छाई हुई हैं । जहां-जहां मृग और पक्षी आदि मधुर ध्वनि कर रहे हैं । श्री ब्रज निधि जी के प्रेरक शब्दों में वृंदावन का वर्णन एक अद्वितीय और प्रेरक अनुभव हैं । इस संबंध में आलोक सोनी भी कहते हैं कि वृंदावन तो श्रीराधा का ही बाग हैं और वही बड़ भागी जीव हैं जो उसे वृंदावन से अनुराग हो गया हैं और मस्तक पर तिलक लगाकर वृंदावन के मंदिरों में कृष्ण-कृष्ण, श्री राधे-राधे के नामाक्षर का गुणगान करने का सौभाग्य मिला ।