परिक्रमा करने और ईश्वरीय आराधना करने तन के साथ मन को शांति और एकाग्रता मिलती हैं जो कि आत्मज्ञान और आध्यात्मिक विकास के लिए पाण्डेय जी बहुत ही महत्वपूर्ण हैं । आपने आशा भोसले जी का एक गाना तो सुना ही होगा ” आगे भी ना जाने दे ना तू पीछे भी ना जाने दे तूं,जो भी हैं बस यही एक पल हैं!” इसी गाने की तरह मैंने भी श्रद्धेय रामचरण सोनी, पूर्व नपाध्यक्ष चांपा तथा श्रीमति सीता सोनी माता-पिता के स्वर्गारोहण के बाद अपनी जिंदगी को अब पल-पल जीना सीखा हैं । साहित्यकार शशिभूषण सोनी ने कहा कि दरअसल मनुष्य पल-पल में ध्यान या फिर परिक्रमा लगाते हुए जीवन जीता हैं वह जीवन में अपने मन को नियंत्रित रख पाता हैं । क्योंकि परिक्रमा का अर्थ हैं किसी पवित्र स्थल, मंदिर, तीर्थ स्थान या किसी विशेष वस्तु के चारों ओर घूमना हैं । यह एक धार्मिक और आध्यात्मिक अनुष्ठान हैं, जिसमें मनुष्य अपनी श्रद्धा और भक्ति प्रकट करता हैं । परिक्रमा करने से मन को शांति और एकाग्रता मिलती हैं और यह आत्मज्ञान और आध्यात्मिक विकास के लिए आवश्यक भी हैं। आनंदन धाम ,अमरताल के निधि वन में परिक्रमा करने से आपको सुकून मिला । यह बहुत ही सुखद और अच्छी बात हैं ,प्रिय रवि पाण्डेय जी के साथ यह अनुभव और विचार साझा करने का इसी बहाने मौका मिला , वैसे भगवा वस्त्र धारण करने से विचार-विन्नता में परिवर्तन स्वाभाविक हैं ।
वक्त बदलता हैं, कुछ चाल-चलन बदलता हैं, मगर अपनापन कभी नहीं बदलता , संदर्भ वरिष्ठ भाजपा नेता रवि पाण्डेय
- Advertisement -