Monday, July 7, 2025

नए भवन हो रहे खंडहर, किराये के मकान में चल रहे दफ्तर

करीब ढाई दशक पहले जब कोरबा जिला का गठन हुआ, तब शहर में गिनती के सरकारी भवन थे। ऐसे में कलेक्टर व एसपी दफ्तर समेत जरूरी विभाग के दफ्तरों का कार्यालय उन भवनों में शुरू हुआ। बाद में जरूरत के हिसाब से सरकारी भवन बनते गए और वहां कार्यालय भी शिफ्ट होते गए, लेकिन शासकीय आयुर्वेद विभाग, छग राज्य सहकारी विपणन संघ मर्यादित का खाद बिक्री केंद्र समेत कई अन्य विभाग है, जिन्हें जिला गठन के 25 वर्षों बाद भी अपने दफ्तर के लिए सरकारी भवन नहीं मिल सका।

नतीजन अब तक इन विभाग के दफ्तर निजी मकानों में किराए पर चल रहे हैं, तो कई दफ्तर दड़बे जैसे कमरों में संचालित हो रहे हैं। ऐसा नहीं कि जिले में भवनों की कमी है। कमी है तो अधिकारियों में योजना बनाने की। जो जरूरी कार्यों की अनदेखी कर गैरजरूरी कार्यों को प्राथमिकता देते हैं। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि शहर में डीएमएफ से करोड़ों रुपए खर्च कर कई भवन का निर्माण कराया गया है, लेकिन अब ऐसे भवन कई साल से अनुपयोगी होकर लावारिस की

किराए से कई विभाग को मिली मुक्ति जिले में छग गृह निर्माण मंडल का दफ्तर भी करीब 2 दशक तक कोसाबाड़ी क्षेत्र में किराए के भवन पर चल रहा था, जहां प्रतिमाह 20 हजार रुपए चुकाना पड़ रहा था। 3 साल पहले ही किराये बचाने के लिए विभाग का दफ्तर उरगा के कॉलोनी में शिफ्ट किया गया। बाद में परेशानी को देखते हुए शहर के रामपुर कॉलोनी में दफ्तर खोला गया है। इसी तरह बीज विकास निगम का दफ्तर करीब एक दशक तक सीतामणी में रामजानकी मंदिर के पास 5 हजार रुपए प्रतिमाह पर भवन में संचालित हो रहा था। करीब 2 साल पहले विभाग का खुद का दफ्तर बना। वहीं आयुर्वेद विभाग के दफ्तर व खाद बिक्री केंद्र के लिए प्रतिमाह 10-10 हजार रुपए चुकाना पड़ रहा है।

डीएमएफ की कराएंगे जांच, खाली पड़े भवनों को बनाएंगे उपयोगी ^कोरबा विधायक लखनलाल देवांगन के मुताबिक कोरबा में डीएमएफ में काफी गड़बड़ी हुई है। इसलिए डीएमएफ की जांच कराएंगे। निर्माण के बाद खाली पड़े सरकारी भवनों को उपयोग में लाया जाएगा।

तरह पड़े हैं। जहां असामाजिक तत्वों ने अपना अड्‌डा बना लिया है।

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