जांजगीर-चांपा, 06 जुलाई 2025/ “कभी छत टपकती थी, अब घर मुस्कुराता है” — यह वाक्य ग्राम खपरीडीह की निवासी श्रीमती प्रतिमा बाई सिदार के जीवन की सच्चाई को बयां करता है। 60 वर्षीया प्रतिमा बाई का जीवन संघर्षों की लंबी कहानी है, पर आज उनके चेहरे पर आत्मविश्वास की जो चमक है, वह प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) की सफलता का प्रतीक बन गई है। पति स्वर्गीय दाताराम के निधन के बाद उन्होंने अकेले पूरे परिवार की जिम्मेदारी निभाई। जीवन ने उन्हें कई बार तोड़ा — एक बेटा असमय सड़क दुर्घटना में काल के गाल में समा गया, दूसरा बेटा जम्मू-कश्मीर में मजदूरी कर जैसे-तैसे मां की मदद कर पा रहा है। तीन बेटियों का विवाह कर चुकी प्रतिमा बाई कभी मिट्टी के जर्जर मकान में बरसात के खौफ और विषैले जीवों के डर में रातें बिताया करती थी। अल्पभूमि किसान होने के बावजूद वे मेहनत-मजदूरी कर अपना जीवन चला रही थीं। लेकिन जब प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत उन्हें स्थायी प्रतीक्षा सूची में स्थान मिला और पहली किस्त प्राप्त हुई, तो मानो उनकी ज़िंदगी ने एक नई करवट ली। पूरे परिवार ने श्रमदान कर घर बनाने में साथ दिया। आज उनका नया पक्का मकान ना सिर्फ सुरक्षित है, बल्कि बुढ़ापे का सबसे मजबूत सहारा बन गया है। केंद्र और राज्य शासन की समग्र सोच और योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन से प्रतिमा बाई को बहुआयामी लाभ मिला। इसके साथ ही स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय निर्माण, विधवा पेंशन योजना से मासिक पेंशन, महतारी वंदना योजना से ₹1000 की मासिक सहायता, मनरेगा के अंतर्गत 90 दिवस की मजदूरी भी दी गई है। अपने नवनिर्मित घर को उन्होंने पारंपरिक जनजातीय नृत्य, वाद्ययंत्रों और सांस्कृतिक प्रतीकों से सजाया है। यह मकान अब सिर्फ चार दीवारें नहीं, उनकी संस्कृति, आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन चुका है। श्रीमती प्रतिमा बाई सिदार भावुक होकर कहती हैं –”यह घर मेरे लिए वरदान से कम नहीं है, प्रधानमंत्री जी और मुख्यमंत्री जी को मेरा कोटि-कोटि नमन है, जिन्होंने मुझे सिर पर छत और मन में गर्व दिया।
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