भारत लद्दाख में खुद को मजबूत करना चाहता है. इसके लिए वह लद्दाख के दूरस्थ इलाके में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पास के इलाके में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चौकी तैयार करने के प्रोजेक्ट को पूरा करने में जुटा हुआ है. इसके जरिए एलएसी के पास मौजूद इस इलाके की कनेक्टिविटी बढ़ जाएगी. दरअसल, भारत दौलत बेग ओल्डी (DBO) तक के लिए एक नया रोड तैयार कर रहा है, जो देश का सबसे उत्तरी मिलिट्री बेस है.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन इस इलाके में अपनी पैठ बनाने की कोशिशों में जुटा है. इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए नए रोड का निर्माण किया जा रहा है. एक बार सड़क बनकर तैयार होने के बाद सैनिकों, हथियारों और लॉजिस्टिक को आसानी से फ्रंटलाइन तक पहुंचाया जा सकेगा. इस नई सड़क की सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसे एलएसी के दूसरी ओर से नहीं देखा जा सकता है. ये सड़क एलएससी से काफी दूर भी है, इसलिए हमले का खतरा भी कम है.
130 किमी लंबी सड़क का हो रहा निर्माण
दौलत बेग ओल्डी रोड नवंबर के आखिर तक सैन्य गतिविधियों के लिए बनकर तैयार हो जाएगा. एक साल के भीतर ये पूरी तरह से ऑपरेशनल हो जाएगा. इस सड़क के निर्माण के लिए 2000 के करीब लोग काम कर रहे हैं. कुल मिलाकर इस सड़क की लंबाई 130 किमी है. नुब्रा घाटी में ससोमा से काराकोरम दर्रे के पास डीबीओ तक 130 किमी लंबी सड़क का निर्माण अपने अंतिम और सबसे चुनौतीपूर्ण चरण में है.
अभी दौलत बेग ओल्डी तक कैसा है रास्ता?
वर्तमान में सेना को लेह से दारबुक होते हुए श्योक नदी के साथ चल रहे रास्ते के जरिए मुर्गो जाना होता है. इसकी दूरी 255 किमी है. फिर मुर्गो से 10 किमी का सफर तय तक दौलत बेग ओल्डी तक पहुंचा जाता है. इस सड़क के साथ नुकसान ये है कि ये एलएसी के काफी करीब से गुजरती है. इस वजह से चीन इस पर हमेशा नजर रख सकता है. अगर चीन की तरफ से हमला किया जाता है, तो इस सड़क से गुजरना काफी खतरनाक हो सकता है.
वहीं, नई सड़क लेह से होते हुए ससोमा जाती है. फिर वहां से सासेर ला और सासेर ब्रांग्सा के 79 किमी के सफर को पूरा किया जाता है. इसके बाद श्योक नदी पर बने पुल को पार करते हुए 42 किमी का सफर तय कर गपशान तक जाया जाता है. फिर गपशान से 10 किमी का सफर तय कर दौलत बेग ओल्डी तक पहुंचा जा सकता है. ये सड़क एलएसी से दूर है और इसलिए इसे काफी सुरक्षित माना जा रहा है.